19 Jun 2014

मैं दरख्त से टूटा एक सूखा पत्ता हूँ




मैं दरख्त से टूटा एक सूखा पत्ता हूँ
ना जिंदा हूँ ना मरता हूँ
आग से मैं दोस्ती करता हूँ
तिनके सा जल उठता हूँ
राख़ बन उड़ जाता हूँ

मैं एक तिरस्कृत झंझावात हूँ
सहता हरदम कुठारघाट हूँ
दुनिया को करता मदमस्त हूँ
मैं तो मैली चादर मे पैबस्त हूँ
अपनी ही हालत मे पस्त हूँ

मैं समंदर मे फेंका एक तिनका हूँ
लहरों पे डूबता उतराता हूँ
किनारे आने को जूझता हूँ
किनारे आ कर भी किनारे से दूर हूँ
समंदर की लहरों के आगे मजबूर हूँ

मैं अपने दुखों मे खुद पिसता हूँ
ढूँढता अंजान रिश्ता हूँ
दुनिया के आगे झूठ सही जीता हूँ
अपने गमों को खुद ही पीता हूँ
अंजान से राहों पर चलता हूँ

मैं तो बस एक नादान परिंदा हूँ
चुनता खुद का फंदा हूँ
आँखों से आधा अंधा हूँ
दिमाग से मैं गंजा हूँ
मैं तो बस मनहूस एक बंदा हूँ

No comments:

Post a Comment