10 Mar 2014

Tired at work


रात-दिन खटते हैं, तारों को तकते हैं,
फिर हम बेचारे उफ तक नहीं करते हैं,
चुप रह कर सब कुछ हम सहते हैं,
घर आ करके भी हम ना तो रुकते हैं,
खाना बनाते हैं और फेसबुक करते हैं।

रात-दिन खटते हैं, तारों को तकते हैं,
सूरज की गर्मी मे दिन को जलते हैं,
चंदा की रोशनी मे भी हम झुलसते हैं,
मशीनों पे अपना सर रख सो जाते हैं,
सपने मे काम-काम ही बड़बड़ाते हैं।

रात-दिन खटते हैं, तारों को तकते हैं,
हम भी इन्सान हैं ना की हैवान हैं,
थकते हैं, तेल मालिश हम खुद करते हैं,
मालिश भी करते हैं पोलिश भी करते हैं
भगवान से हम गुजारिश भी करते हैं।

रात-दिन खटते हैं, तारों को तकते हैं,
फिर भी हमसे, देखो लोग यूं जलते हैं,
क्यूँ भगवान हम बेचारों को ठोकते हैं,
ऐसी भी क्या है जल्दी, ले आओ जरा हल्दी,
ले आओ जरा हल्दी, ले आओ जरा हल्दी।

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