2 Jul 2012

वर्णों की उत्पत्ति

ऐसा माना जाता है की ब्राम्हण की उत्पत्ति ब्रम्ह के मुख से और इसी प्रकार क्षत्रिय की उत्पत्ति ब्रम्ह के भुजा से, वैश्य की उत्पत्ति ब्रम्ह के जंघा से तथा शुद्र की उत्पत्ति ब्रम्ह के पैरों से हुई है।

पर इसका मतलब क्या है?

लोग इसके मतलब को समझे बिना इसको गलत मायने में लेकर जातिवाद को बढ़ावा देते आये हैं।

असल में ये अलंकृत शब्द हैं जिनका मतलब गूढ़ है...इश्वर के शारीरिक अंगो से चार वर्ण दिखाए गए हैं जातियां नहीं ... ज्यादा तो मैं नहीं लिख पाउँगा पर इस विषय पर, पर फिर भी मैं कोशिस करता हूँ।

उपरोक्त पंक्तियों का मतलब हुआ की:

ब्राम्हण वर्ण बना था शिक्षा और लोगो को सन्मार्ग पर चलाने के लिए और ऐसे में ब्राम्हण के वाणी पर बहुत कुछ निर्भर करता है अतः जो भी इस कार्य को कर रहा है वो ब्राम्हण हुआ ...अतः सन्मार्ग और पढाई के मार्ग पर चलाने  के लिए बने वर्ण को ब्राम्हण और उनके मुख-प्रभाव को देखते हुए उनकी उत्पत्ति ब्रम्ह के मुख से होना कहा गया|

क्षत्रिय वर्ण है सहस और लोगो की रक्षा हेतु...अतः इसमें बाहू बल का प्रयोग है...इस वजह से इस वर्ण की उतपत्ति ब्रम्ह के भुजा से दिखाते हैं|

वैश्य वर्ण का कार्य था हिसाब-किताब या सही मायने में कहे तो व्यापारिक गतिविधियों हेतु अतः इसमें प्राचीनतम पद्धति में जैसे गल्ले पर बैठना दिखाया गया उसी से इस वर्ण की उतपत्ति ब्रम्ह के जंघा से दिखाई गई|

शुद्र वर्ण और सबसे विशेष वर्ण...इस वर्ण का कार्य भी बहुत बड़ा था...साफ़-सफाई से ले कर लोगों की सेवा-सुश्रुषा तक करना ताकि वो अपने निर्धारित कार्य को आसानी से कर सकें...इसमें पैरों का उपयोग ज्यादा सोच इस वर्ण की उतपत्ति को ब्रम्ह के पैरों से दिखाया गया|

कर्म आधारित इन वर्णों की उत्पत्ति उनके कर्मो के अनुसार अलंकरण किया गया| इसे कौन सा अलंकर कहते हैं इस बारे में नहीं पता मुझे पर शायद अतिशयोक्ति अलंकर कहते हैं इसे (सही अलंकर बताने की कोई कृपा करे)। अतः मैं इसे केवल अलंकृत बोल कर ही चल रहा हूँ|

इसमें कही से ये जातियां नहीं थी वरन ये सभी वर्ण थे जिनका निर्धारण केवल उनके कर्म के आधार पर किया गया था। जो जिस कर्म को करेगा उसका वर्ण वही हुआ। पर कुछ विशेष परिश्थितियों ने इसे एक सोची-समझी गन्दी मानसिकता के चाल के तहत इसे जातिगत बना दिया और दंश हम सभी झेल रहे हैं।

जातियों का उल्लेख केवल मुगलिया सल्तनत के आने के बाद ही दीखता है। उसके पहले तक केवल वर्ण व्यवस्था ही चल रही थी। पर भारत पर राज करने के लिए बाँटना जरुरी था अतः इस घृणित जातिगत व्यवस्था का प्रादुर्भाव हुआ जो आज एक विकराल रूप धारण कर चुकी है और भारत को निगलने को बेकरार बैठी है।

आज जरुरत है की हम पुनः वर्ण व्यवस्था को बनायें और जातिगत ताने बाने को जड़ से उखड फेंके। मानता हूँ की ये मुस्किल है परन्तु नामुमकिन नहीं। हम अपने से इसे शुरू कर सकते हैं फिर धीरे-धीरे समाज में।




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