31 May 2012

सोचा था कभी ये मैंने

सोचा था कभी ये मैंने
होंगे आजाद हम
सोचा था कभी ये सभी ने
लेंगे साँस आज़ादी की हम
मिली रुस्वाईयां हमें
एक नौटंकी बनी
जो चली जा रही है
दूर तलक अँधेरा
गुंजायमान अभिमान है
टुटा विश्वास मेरा
घोर अपमान है
देश है नंगा अभी
कुछ की तो तान है
सोचा था मैंने कभी
होंगे आजाद हम
रुशवा किया हमें अपनों ने
झूठी ये शान है
बँटी हमारी ही पहचान है
दुःख हुआ जब देखा मैंने
दुश्मन से गलबहियां
अपनों में तानी तलवार है
इज्जत भी गई
वो शोहरत भी गई
फिर भी झूठा अभिमान है
"मैं" को सोचते हैं हमेसा
"हम" को भूल गए हैं
चाहत अभी भी है आज़ादी की
पर क्रांति नहीं ला सकते हैं
क्रन्तिकारी को भी हैं भूले
क्रांति चाहिए पड़ोस से
सोचा था मैंने कभी
होंगे आजाद हम 
कटुता भरी है दिल में
मक्कारी हमने दुश्मनों से सिखा
उपयोग इनका अपनों पर करते हैं
गैरों से मोहब्बत रखते हैं
अपनों को भुला दिया है
गैरो को गले लगाया
कहते हैं इसे भाईचारा
जब घर में ही ना हो
भाई तो कहा मिलेगा चारा
सोचने की जगह हम 
सुनने में यकीन रखते हैं
वाणी पर संयम नहीं
बात बहादुरी की करते हैं
सोचा था कभी ये मैंने
होंगे आजाद हम
प्रेम की भाषा भूल कर
इर्ष्या को है अपनाया हमने
अपने लोगों को ही हमने
अपने से दूर भगाया है
बातें करते हैं बड़ी-बड़ी
छोटी सोच के सताए हैं
दुश्मन जो ना कर सका
वो करके हमने दिखाया है
अपने लोगों को ही हमने
अपने आंगन में दफनाया है
लूटी इज्जत को हमने
हँसी में उड़ाया है 
लूटेरों को ही हमने 
दिल में अपने बसाया है
अपनों को लात
और गैरों को भात 
करो इन बातों को आत्मसात
पहचानो की कौन अपना
और कौन पराया है
किसने दिया मुँह में बीड़ा-पान
किसने पीठ में खंजर चुभाया है
सोचा था कभी ये मैंने
होंगे आजाद हम

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